Unseen Passage for Class 10 Hindi Apathit Gadyansh Solved

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Class 10 Hindi Apathit Gadyansh Unseen Passage

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Apathit Gadyansh for Class 10

अपठित गद्यांश 

दुख के वर्ग में जो स्थान भय का है, वही स्थान आनंद-वर्ग में उत्साह का है| भय में हम प्रस्तुत कठिन स्थिति के नियम से विशेष रूप में दुखी और कभी-कभी उस स्थिति से अपने को दूर रखने के लिए प्रयत्नवान भी होते हैं| उत्साह में हमें आने वाली कठिन स्थिति के भीतर साहस के अवसर के निश्चय द्वारा प्रस्तुत कर्म-सुख की उमंग से अवश्य प्रयत्नवान होते हैं| उत्साह में कष्ट या हानि सहन करने की दृढ़ता के साथ-साथ कर्म में प्रवृत्त होने के आनंद का योग रहता है| साहसपूर्ण आनंद की उमंग का नाम उत्साह है| कर्म-सौंदर्य के उपासक ही सच्चे उत्साही कहलाते हैं|

जिन कर्मों में किसी प्रकार का कष्ट या हानि सहने का साहस अपेक्षित होता है, उन सब के प्रति उत्कंठापूर्ण आनंद उत्साह के अंतर्गत लिया जाता है| कष्ट या हानि के भेद के अनुसार उत्साह के भी भेद हो जाते हैं| साहित्य मीमांसकों ने इसी दृष्टि से युद्ध-वीर, दान-वीर इत्यादि भेद किए हैं| इनमें सबसे प्राचीन और प्रधान युद्ध वीरता है, जिसमें आघात, पीड़ा या मृत्यु की परवाह नहीं रहती| इस प्रकार की वीरता का प्रयोजन अत्यंत प्राचीन काल से होता चला आ रहा है, जिसमें साहस और प्रयत्न दोनों चरम उत्कर्ष पर पहुंचते हैं| साहस में ही उत्साह का स्वरूप स्फुरित नहीं होता| उसके साथ आनंदपूर्ण प्रयत्न या उसकी उत्कंठा का योग चाहिए| बिना बेहोश हुए भारी फोड़ा चिराने का तैयार होना साहस कहा जाएगा, पर उत्साह नहीं| इसी प्रकार चुपचाप बिना हाथ-पैर हिलाये, घोर प्रहार सहने के लिए तैयार रहना साहस और कठिन प्रहार सहकर भी जगह से ना हटना धीरता कही जाएगी| ऐसे साहस और धीरता को उत्साह के अंतर्गत तभी ले सकते हैं, जबकि साहसी धीर उस काम को आनंद के साथ करता चला जाएगा जिसके कारण उसे इतने प्रहार सहने पड़ते हैं| सारांश यह है कि आनंदपुर प्रयत्न या उसकी उत्कंठा में ही उत्साह का दर्शन होता है, केवल कष्ट सहने में या निश्चित साहस में नहीं| ध्रती और साहस दोनों का उत्साह के बीच संचरण होता है|

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नो के उत्तर लिखिए |

1.गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए|

2.उत्साह किसे कहते हैं?

3.उत्साह के भेदों में सबसे प्राचीन और प्रधान देश कौन सा है? और क्यों?

4.आनंद वर्ग कर्म सौंदर्य युद्धवीर दानवीर शब्दों के समास बताइए|

उपरोक्त प्रश्नो के संभावित उत्तर:-

1.गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक उत्साह है|

2.दुःख तथा आनंद को दो मनोभाव हैं| दुःख के वर्ग में जो स्थान भय का है, वही स्थान आनंद के वर्ग में उत्साह का है| जब हम आगे वाली कठिन परिस्थिति का सामना करने की हिम्मत जुटाते हैं और कार्य करने में खुशी से लग जाते हैं, तो उसे हमारा उत्साह कहा जायेगा| जिन कार्यों के करने में कष्ट हानि सहने के साहस की जरूरत होती है, उनमें प्रसन्नता के साथ लग जाने के भाव को ही साहस कहते हैं|

3.साहित्य के विचारको ने कष्ट या हानि सहने के साहस की मात्रा के अनुसार उत्साह के युद्धवीर, दानवीर, दयावीर आदि भेद किए हैं| इन भेदों में युद्धवीरता सबसे प्राचीन तथा प्रधान भेद है| इसमें चोट, पीड़ा या मृत्यु की परवाह नहीं रहती| इस प्रकार की वीरता का प्रयोजन बहुत पुराने समय से चलता आ रहा है| इसमें साहस और प्रयत्न दोनों का चरम उत्कर्ष मिलता है|

4.आनंद का वर्क तत्पुरुष समास कर्म का सौंदर्य तत्पुरुष समास युद्ध में वीर तत्पुरुष समास धान में वीर तत्पुरुष समास|

 

Discursive Passage Hindi for Class 10
 

अपठित गद्यांश

आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी,

हाथों पे झूलती है उसे गोद-भरी

रह-रह के हवा में जो लोका देती है

गूँज उठती है खिलखिलाते बच्चो कि हंसी

 

नहला के छलके-छलके निर्मल जल से

उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके

किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को

जब घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपडे|

 

दिवाली कि शाम घर पुते और सजे

चीनी के खिलौने जगमगाते लावे

वो रूपवती मुखड़े पै इक नर्म दमक

बच्चे के घरौंदे में जलती है दिए

 

आँगन में ठुनक रहा है जिदयाया है,

बालक तो हई पै ललचाया है

दर्पण उसे दे के कह रही है माँ

देख आईने में चाँद उतर आया है

 

रक्षाबंधन कि सुबह रस की पुतली

छायी है घटा गगन की हलकी हलकी

बिजली की तरह चमक रहे है लच्छे

भाई के है बांधती चमकती राखी

 

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नो के उत्तर लिखिए |

1.पद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए|

2.कवि ने यहाँ माता के बच्चे के प्रति स्नेह का क्या वर्णन किया है?

3.चाँद लेने की जिद कौन कर रहा है?

4.'छलके-छलके' में कौन-सा अलंकार है?

 

उपरोक्त प्रश्नो के संभावित उत्तर:-

1.शीर्षक- स्नेहमयी माँ|

2.माँ अपने बच्चे को गोद में लेकर आँगन में खड़ी है| वह उसे बाँहों में झूला रही है| वह उससे हवा में उछलती है तो बच्चे की हंसी गूँज उठती है| वह साफ़ पानी से बच्चे को नहलाती है, उसके उलझे हुए बालों में कंघी करती है| जब वह बच्चे को घुटनो में लेकर कपडे पहनती है तो बच्चा उसे प्यार से देखता है|

3.बच्चा माँ से चादन लेने की जिद कर रहा है| वह घर के आँगन में ठुनक ठुनक क्र मचल रहा है| वह चाँद को हाथ में लेने का लालच कर रहा है| माँ अपने बच्चे को बहलाना चाहती है| वह बच्चे सामने एक शीशा रख देती है और कहती है- देख चाँद इस शीशे में उतर आया है|

4.'छलके-छलके' में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है|

Apathit Gadyansh with multiple choice questions for Class 10

 

अपठित गद्यांश 

ज़िंदगी में जो कुछ है, जो भी है

सहर्ष स्वीकार है,

इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है

वह तुम्हे प्यारा है|

गरबीली गरीब यह, ये गंभीर अनुभव सब

यह विचार- वैभव सब

दृढ़ता यह, भीतर कि सरिता यह अभिनव सब

मौलिक है, मौलिक है

इसलिए कि पल पल में

जो कुछ भी जाग्रत है अपलक है-

संवेदना तुम्हारा है|

 

जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है

जितना भी उंडेलता हूँ, भर भर फिर आता है

दिल में क्या झरना है?

मीठे पानी का सोता है

भीरत वह, ऊपर तुम

मुसकाता चाँद ज्यूँ धरती पर रात भर

मुझ पर त्यूँ तुम्हारा ही खिलता वग चेहरा है|

 

सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ मैं भूलूँ मैं

तुम्हे भूल जाने की

दक्षिण ध्रुवी अंधकार अमावस्या

शरीर पर, चेहरे पर, अंतर मे पा लूँ मैं

झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं

इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित|

रहने का रमणीय उजेला अब

सहा नहीं जाता है|

नहीं सहा जाता है|

ममता के बादल की मंडराती कोमलता-

भीतर पिरती है

कमजोर और अक्षम अब हो गयी है आत्मा यह

छटपटाती छाती को भवितव्यता डरती है

बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है|

 

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नो के उत्तर लिखिए |

1.प्रस्तुत पद्यांश का शीर्षक लिखिए|

2.'गरबीली गरीबी' से कवी की कौन-सी विशेषता प्रकट हुई है?

3.अपनी प्रेयसी के साथ कवी के रिश्ते की क्या विशेषता है?

4.बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है- में कौन-सा अलंकार है?

 

उपरोक्त प्रश्नो के संभावित उत्तर:-

1.पद्यांश का शीर्षक- संवेदना तुम्हार है|

2.कवि निर्धन है| उसे अपनी निर्धनता से कोई शिकायत नहीं है| लोगो के सामने स्वयं को निर्धन स्वीकार करने में भी उसको कोई शर्म नहीं महसूस होती| उसे तो अपनी गरीबी पर गर्व का अनुभव होता है| उसको इनमे अपना आत्मसम्मान दिखाई देता है| गरीबी को वह अपने जीवन की उपलब्धियों में गिनता है|

3.अपनी प्रेयसी के साथ कवि का रिश्ता अत्यंत गहरा है| 'जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है'- मे कवि ने अपने रिश्ते की गहराई का वर्णन किया है| कवि को स्वयं इसकी गहराई का पता नहीं है| उसे लगता है कि उसके ह्रदय में कोई मीठे पानी का सोता बह रहा है| उसमे से जितना प्यार का जल वह प्रियतम पर फैंकता है, वह उतना हे अधिक बढ़ता चला जाता है|

4.'बदलती सहलाती आत्मीयता बर्दाश्त नहीं होती है'- में मानवीकरण अलंकार है|

Apathit Gadyansh for Class 10 with answers pdf

 

अपठित गद्यांश

इतना कुछ है भरा विभव का कोष प्रकर्ति के भीतर,

निज इच्छित सुख भोग सहज ही पा सकते नारी नर|

सुब हो सकते तुष्ट, एक सा सुब सुख पा सकते है,

चाहे तो पल में धरती को स्वर्ग बना सकते है|

छिपा दिए सुब तत्व आवरण के नीचे ईश्वर ने,

संघर्षो से खोज निकला उन्हें उधमी नर ने |

ब्रह्मा से कुछ लिखा भाग्य में मनुज नहीं लाया है,

अपना सुख उसने अपने भुजबल से ही पाया है|

प्रकर्ति नहीं डरकर झुकती है कभी भाग्य के बल से,

सदा हारती वह मनुष्य के उद्धम से; श्रमजल से|

ब्रह्मा का अभिलेख पढ़ा करते निरुद्धमि प्राणी,

धोते वीर कु-अंक भाल का बहा भुवो से पानी|

भाग्यवाद आवरण पाप का और शास्त्र शोषण का,

जिससे रखता दबा एक जन भाग दूसरे जन का|

पूछो किसी भाग्यवादी से यदि विधि-अंक प्रबल है,

पद पर क्यों देती न स्वयं वसुधा निज रतन उगल है?

उपजाता क्यों विभव प्रकर्ति को खींच खींच वह जल से?

एक मनुज संचित करता है अर्थ आप के बल से,

और भोगता उसे दूसरा भाग्यवाद के छल से|

नर समाज का भाग्य एक है वह श्रम, वह भुज बल है,

जिसके सम्मुख झुकी हुई पृथ्वी विनीत नभ ताल है|

जिसने श्रम जल दिया, उसे पीछे मत रह जाने दो,

विजित प्रकर्ति से सबसे पहले उसको सुख पाने दो|

 

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नो के उत्तर लिखिए |

1.काव्यांश हेतु एक उपयुक्त शीर्षक दीजिये|

2.प्रकर्ति मनुष्य से कब झुकती है? निरुद्मी प्राणी किसे कहा गया है?

3.भाग्यवाद के बारे में कवी का क्या कहना है?

4.'सींच सींच' में कौन सा अलंकार है?

 

उपरोक्त प्रश्नो के संभावित उत्तर:-

1.शीर्षक- 'प्राकर्तिक वैभव एवं श्रम जल'|

2.प्रकर्ति भाग्य पर भरोसा करने वालो के सामने कभी नहीं झुकती| वह केवल मनुष्य के पराक्रम से हार मानती है| वह पसीना बहाने वालो के सामने झुकती है| जो मनुष्य परिश्रम नहीं करते और सब कुछ केवल भाग्य का नाम लेकर प्राप्त करना चाहते है, उनको निरुद्धमि प्राणी कहा गया है|

3.कवि ने भाग्यवाद को पाप पर पड़ा हुआ पर्दा माना है| आलसी और निकम्मे लोग अपनी कर्महीनता के पाप को भाग्य का नाम लेकर छिपाते है| भाग्य का नाम लेकर एक मनुष्ये दूसरे मनुष्ये का शोषण करता है| भाग्य के नाम पर ही एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को दबा लेता है| मनुष्य का भाग्य केवल उसका परिश्रम तथा बाहो की शक्ति ही है|

4.'सींच -सींच' में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है|

Short Apathit Gadyansh Class 10 with questions and answers

 

अपठित गद्यांश 

मैं यह भी सोच रहा था कि बाबा रामदेव अगर विदेश में छिपे काले धन के साथ देश में व्याप्त काले धन के खिलाफ बोलने लगे, तो शायद उनकी हालत खराब हो जाएगी| दुकानों के बाहर अखबार व्यापारी तब बाबा के प्रशंसक नहीं रह पाएंगे| मैं यह भी अनुमान लगा रहा था कि किरण बेदी जब पुलिस अधिकारी थी, तो क्या उनके अधीन काम करने वाली पुलिस ने रिश्वत लेना बंद किया होगा| शायद ऐसा नहीं हुआ होगा| वे स्वयं ईमानदार वैसे ही रही होंगी, जैसे मनमोहन सिंह है| कीचड़ के बीच कुर्सी लगाकर आप बैठ जाएं और कहे कि आप पर दाग नहीं है, तो इससे समाज को क्या फायदा| आप अपनी छवि चमकाते रहो| कीचड़ को साफ क्यों नहीं करते? आपकी ईमानदारी से व्यवस्था पर क्या फर्क पड़ा? यह तो हमारा दुर्भाग्य है कि यहां ईमानदार रहना ही, एक उपलब्धि मानी जाती है| जबकि उपलब्धि तो उसे कहना चाहिए, जिसके कारण व्यवस्था में कोई स्थाई परिवर्तन हो पाया हो| मैं अरुण राय को भी वहां देखकर हंस पड़ा| सोनिया गांधी की सलाहकार परिषद की सदस्य भी यहॉं भ्रष्टाचार पर भाषण दे रही थी| इतना दोगलापन?

कुछ बुद्धिजीवियों के अखबारों में लेख पढ़कर भी हंसी आती है| कुलदीप नय्यर, इंदर मल्होत्रा आदि को यह परेशानी है कि जनता को सांप सूंघ गया है| वे कहते हैं कि समझ नहीं आता, लोग खुलकर भ्रष्टाचार का विरोध क्यों नहीं कर रहे| अब जब आपको देश की जनता की सोच समझ में नहीं आ रही है, तो आप कैसे बुद्धिजीवी हैं? आप कौनसी दुनिया में रहते हैं? आप खुद बाहर निकलने से डरते हैं और दूसरों से अपेक्षा करते हैं कि वे आपके जीवन को बेहतर बना दे| कब तक इस मुगालते में जिया जा सकता है?

आपको यह न लगे कि मैं भ्रष्टाचार के समर्थन में तर्क दे रहा हूं| भ्रष्टाचार खत्म करने के वर्तमान तरीके जारी रहे और साथ में इस बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए दीर्घकालीन उपाय भी शुरू किए जाने चाहिए इसलिए अब अंत में भ्रष्टाचार को खत्म करने का मेरा सुझाव आपके सामने रख दूँ|

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नो के उत्तर लिखिए |

1.गद्यांश का शीर्षक लिखिए|

2.कीचड़ में कुर्सी लगाकर बैठने से क्या मतलब है?

3.किसी व्यक्ति विशेष के ईमानदार बने रहने को लेकर उपलब्धि क्यों नहीं मानता?

4.विलोम शब्द लिखिए – विदेश, प्रशंसक, दीर्घकालीन, समर्थन|

उपरोक्त प्रश्नो के संभावित उत्तर:-

1.गद्यांश का शीर्षक- ‘सच्ची ईमानदारी’ है|

2.कीचड़ में कुर्सी लगाकर बैठने का अर्थ है बेईमानों के बीच में ईमानदार बनने की कोशिश करना| यदि बाबा रामदेव देश में व्याप्त काले धन को खत्म करने की बात करेंगे तो उनको देश के व्यापारियों का ही विरोध झेलना पड़ेगा| किरण बेदी जब पुलिस अधिकारी थी, तो उनके अधीनस्थों ने रिश्वत लेना बंद नहीं किया था| मनमोहन सिंह भी एक ईमानदार प्रधानमंत्री थे| किंतु कुछ लोगों के ईमानदार होने से देश एवं समाज से बेईमानी और भ्रष्टाचार बने रहे है|

3.लेखक किसी व्यक्ति विशेष द्वारा इमानदारी के प्रदर्शन को बड़ी उपलब्धि नहीं मानता| यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि यहां कुछ लोग इमानदार रहे हैं किंतु बहुसंख्यक समाज में बेईमानी और भ्रष्टाचार बने रहे हैं| तथाकथित इमानदार लोगों ने समाज से बेईमानी को मिटाने के लिए कुछ नहीं किया| उपलब्धि तो उस काम को माना जाना चाहिए जिससे व्यवस्था में स्थाई परिवर्तन हो| भ्रष्टाचार के विरोध में केवल भाषण देना काफी नहीं है| तथाकथित ईमानदार लोग स्वयं कुछ नहीं करते जनता से अपेक्षा करते हैं कि वह भ्रष्टाचार का विरोध करें|

4.विलोम शब्द- (i) विदेश- देश

(ii) प्रशंसक- निंदक

(iii) दीर्घकालीन- अल्पकालीन

(iv) समर्थन- विरोध|

Case based factual Passage for Class 10

 

अपठित गद्यांश 

आत्मविश्वास जब किसी कौम का डगमगा जाता है, तो वह हर तरह से डरी-डरी रहती है| देश आजाद होते- होते हम एक कमजोर अर्थव्यवस्था बन चुके थे| जैसे तैसे पेट भरना, हमारी मानसिकता हो गई थी| कुछ लोग जरूर यहां से बाहर चले गए और वहां पर अपनी धाक भी जमा ली| परंतु अधिकांश आबादी इसी धरती पर अपने जीवन को अभिशाप मानकर बैठी रही|

अब हाल यह है कि आप कुछ भी नए प्रयास की बात करिए, 100 में से 99 लोग आपको असफलता मिलने की गारंटी देंगे| सफलता की नहीं, जैसा गुजरात में होता है| आप दुकान लगाना चाहेंगे, तो आपको ना कहा जाएगा| नए आइटम की दुकान यहां नहीं चलेगी, पुराने आइटम की दुकान पहले भी बहुत है, ऐसा कहा जाएगा| मैंने जब अपनी कपड़ों की दुकान शुरू की थी, तब मुझे सभी शुभचिंतकों ने मना किया था| अब चल गई है, तो मेरे जैसी कई दुकानें स्थापित हो गई है| एक अच्छा-सा बाजार बन गया है| इसी प्रकार आप अगर खेती में सुधार की बात करेंगे, तो आपको हंसी उड़ाई जाएगी| आप नहीं मानेंगे, तो पहले के किसी असफल प्रयास को बार-बार दोहराया जाएगा इसलिए अधिकतर सरकारी प्रयास यहां पिट जाते हैं| ऐसा नहीं है कि कर्मचारी बिल्कुल ही कोशिश नहीं करते हैं|

ऐसा नहीं हो सकता, ऐसा कभी हुआ क्या, मान ही नहीं सकता, सब कहने की बात है, यह हमारी शब्दावली है| जयपुर से बाड़मेर तक, गंगानगर से बांसवाड़ा तक| हमारी नकारात्मकता को ढकने के लिए तर्को की कहां कमी है? बातें कहने में तो हम माहिर थे ही| हाँ, तब समाज को आगे बढ़ाने की बातें करते थे, अब जो बातें करते हैं, वह समाज को आगे बढ़ने से रोकती है इतने से फर्क से तो जापान-सिंगापुर जैसे छोटे देश मजबूत है और भारत-अफ्रीका भूख से जूझते हैं|

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नो के उत्तर लिखिए |

1.गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए|

2.देश आजाद होते ही हमारी आर्थिक स्थिति कैसी थी?

3.नकारात्मक मानसिकता का क्या आशय है?

4.प्रत्यय अलग कीजिए- असफलता, मानसिकता, नकारात्मकता, सामाजिकता|

उपरोक्त प्रश्नो के संभावित उत्तर:-

1.गद्यांश का उचित शीर्षक- ‘कमजोर अर्थव्यवस्था और हमारा हीन भाव’ है|

2.देश आजाद हुआ तो हमारी आर्थिक स्थिति अत्यंत कमजोर हो चुकी थी| हम एक कमजोर अर्थव्यवस्था बन चुके थे| किसी प्रकार अपना पेट भरना हमारी मानसिकता बन गई थी| कुछ लोग देश छोड़कर बाहर चले गए थे और वहां अपने आप को अच्छी तरह स्थापित कर लिया था किंतु अधिकांश लोग इसी देश की धरती पर कठिनाइयों भरा जीवन बिता रहे थे|

3.भारत में आर्थिक विकास में सबसे बड़ी बाधा नकारात्मक मानसिकता है| लोग कोई काम या उद्योग शुरू करने पर सफलता में विश्वास व्यक्त न करके असफलता की आशंका ज्यादा प्रकट करते हैं| दुकान शुरू करें या खेती में सुधार की बात करें, लोग आपको हतोत्साहित करेंगे| ऐसा नहीं हो सकता, ऐसा कभी हुआ भी है, मैं मान नहीं सकता, यह सब कहने की बातें है आदि कथन प्रत्येक नया काम शुरू करने वाले के सामने दीवार बनकर खड़े हो जाता है| ये बातें हमें आगे बढ़ने से रोकती है तथा आर्थिक विकास में बाधा डालती है|

4.प्रत्यय और मूल शब्द- (i) असफल+ता = असफलता

(ii) मानसिक+ता = मानसिकता

(iii) नकारात्मक+ता = नकारात्मकता

(iv) सामाजिक+ता = सामाजिकता

Class 10 Solved Apathit Gadyansh

अपठित गद्यांश 

ईर्ष्या का यही अनोखा वरदान है| जिस मनुष्य के हृदय में घर बना लेती है, बल्कि उन वस्तुओं से दु:ख उठाता है, जो दूसरों के पास है| वह अपनी तुलना दूसरों के साथ करता है और इस तुलना में अपने वक्ष के सभी अभाव उसके हृदय पर दंश मारते रहते हैं| दंश के इस राह को भोगना कोई अच्छी बात नहीं है| मगर, ईर्ष्यालु मनुष्य करें भी तो क्या? आदत से लाचार होकर उसे यह वेदना भोगनी पड़ती है|

एक उपवन को पाकर भगवान को धन्यवाद देते हुए उसका आनंद नहीं लेना और बराबर इस चिंता में निमग्न रहना कि इससे भी बड़ा उपवन क्यों नहीं मिला? एक ऐसा दोष है जिससे ईर्ष्यालु व्यक्ति का चरित्र और भी भयंकर हो उठता है| अपने अभाव पर दिन-रात सोचते-सोचते वह सृष्टि की प्रक्रिया को भूल कर विनाश में लग जाता है और अपनी उन्नति के लिए उधम करना छोड़कर वह दूसरों की हानि पहुंचाने को ही अपना श्रेष्ठ कर्तव्य समझने लगता है|

ईर्ष्या की बड़ी बेटी का नाम निंदा है| जो व्यक्ति ईर्ष्यालु होता है, वही व्यक्ति बुरे किस्म का निंदक भी होता है| दूसरों की निंदा वह इसलिए करता है कि इस प्रकार, दूसरे लोग जनता अथवा मित्रों की आंखों से गिर जाएंगे और तब जो स्थान रिक्त होगा उस पर अनायास में ही बिठा दिया जाऊंगा|

मगर, ऐसा ने आज तक हुआ है और आगे होगा| दूसरों को गिराने की कोशिश तो अपने को बढ़ाने की कोशिश नहीं कही जा सकती| एक बात और है कि संसार में कोई भी मनुष्य निंदा से नहीं गिरता| उसके पतन का कारण अपने ही भीतर के सद्गुणों का हस्स होता है| इसी प्रकार कोई भी मनुष्य दूसरों की निंदा करने से अपनी उन्नति नहीं कर सकता| उन्नति तो उसकी तभी होगी, जब वह अपने चरित्र को निर्मल बनाए|

ईर्ष्या का काम जलना है, मगर सबसे पहले वह उसी को जलाती है जिसके हृदय में उसका जन्म होता है| आप भी ऐसे बहुत से लोगों को जानते होंगे जो ईर्ष्या और द्वेष को साकार मूर्ति है|

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नो के उत्तर लिखिए |

1.उपयुक्त गद्यांश के लिए एक उचित शीर्षक लिखिए|

2.ईर्ष्यालु मनुष्य अपनी किस आदत से लाचार होकर कष्ट उठाता है|

3.ईर्ष्यालु व्यक्ति दूसरों की निंदा क्यों करता है?

4.ईर्ष्या का अनोखा वरदान क्या है?

5.‘साकार’ शब्द का विग्रह कीजिए संधि का नाम लिखिए|

उपरोक्त प्रश्नो के संभावित उत्तर:-

1.उपयुक्त गद्यांश के लिए उचित शीर्षक- ईर्ष्या|

2.ईर्ष्यालु व्यक्ति की आदत बन जाती है कि वह अपनी तुलना दूसरों से करता है कुछ वस्तुएँ दूसरों के पास होती है और उसके पास नहीं होती यह बात उसको दु:ख देती है| वह अपने पास होने वाली वस्तुओं का आनंद प्राप्त न करके जो चीजें उसके पास नहीं है, उनके अभाव से दु:खी बना रहता है और जलता रहता है| अपनी इसी आदत के कारण वह कष्ट उठाता है|

3.ईर्ष्यालु व्यक्ति को दूसरों की निंदा करने में आनंद आता है| वह यह सोच कर दूसरों की निंदा करता है कि ऐसा करने से वह जनता और मित्रों की नजर में गिर जायेंगे| उनके रिक्त हुए स्थान पर उसको बैठने और आगे बढ़ने का अवसर मिल जायेगा| वह दूसरों को गिराकर स्वयं आगे बढ़ना चाहता है लेकिन ऐसा होता नहीं है| निंदा करने से कोई व्यक्ति नीचे नहीं गिरता| ईर्ष्यालु व्यक्ति इस सच्चाई को नहीं समझता और दूसरों को बदनाम करके स्वयं आगे बढ़ने के विचार में निंदा करने के काम में लगा रहता है|

4.जिस मनुष्य के हृदय में घर बना लेती है, बल्कि उन वस्तुओं से दु:ख उठाता है, जो दूसरों के पास है| वह अपनी तुलना दूसरों के साथ करता है और इस तुलना में अपने वक्ष के सभी अभाव उसके हृदय पर दंश मारते रहते हैं| दंश के इस राह को भोगना कोई अच्छी बात नहीं है|

5.विग्रह - स+आकार

संधि - दीर्घ संधि

Case based Apathit Gadyansh for Class 10

अपठित गद्यांश 

शिक्षा पर हमारी बहस एक अंधेरी गली की तरफ ले जा रही है| इस पर इतना बोला और लिखा जा रहा है कि शिक्षा के मूल प्रयोजन से ध्यान हट गया है| अब शिक्षा का ज्ञान से संबंध ही कट गया है और इसकी मंजिल साक्षरता और डिग्री ही रह गई है| अब अधिकतर ध्यान स्कूलों में नामांकन बढ़ाकर वाहवाही लूटने, भवन निर्माण, परीक्षा पद्धतियों में परिवर्तन और जैसे-तैसे भी संस्थान खोलने पर लग गया है| देश के विकास के लिए शिक्षा का विस्तार करने की अंधी दौड़ में नई पीढ़ी को धकेल दिया गया है, जहां सरकारी और गैर-सरकारी माफिया आम जन का शोषण मात्र कर रहा है|

दरअसल शिक्षा का अर्थ होता है- समाज के वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप वांछित नागरिक तैयार करना| लेकिन इस पर कोई बहस नहीं है, चर्चा नहीं है| 70% लोगों को इतिहास पढ़ाकर पता नहीं किस तरह के नागरिक तैयार किए जा रहे हैं| क्या हमारी मुख्य आवश्यकता हमारी इतिहास को जानना ही है| नहीं तो फिर इस बात पर चिंतन बंद क्यों है? हमारी अर्थव्यवस्था का 60% भाग खेती पर आधारित है और उससे जुड़े ज्ञान के लिए 1% से भी कम ध्यान दिया जा रहा है| कुटीर उद्योगों को हमारी प्रत्येक उद्योग नीति में भारतीय विकास का आधार बताया जाता है|

उद्योगों के क्षेत्र को आगे बढ़ाने की शिक्षा क्षेत्र में भारी उपेक्षा क्यों है? कपड़े, साबुन, जूते, टूथपेस्ट, पेन, फर्नीचर, कप-गिलास आदि वस्तु बनाने से ध्यान क्यों हटाया हुआ है? केवल बड़ी कंपनियों के भरोसे देश की महत्वपूर्ण उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन छोड़कर हम कितना बड़ा गुनाह कर रहे हैं? इन्हीं बातों पर शिक्षा के क्षेत्र में चिंतन-मंथन हो तो कुछ हो जाएगा| वरन तर्कशास्त्रियों की चिकनी चुपड़ी बातों से शिक्षा का अनर्थ होता ही रहेगा| ‘अभिनव राजस्थान’ में विस्तार से कार्ययोजना तैयार हो रही है, जिससे कोई भी शिक्षित व्यक्ति रोजगार के लिए हाथ फैलाने की बजाय रोजगार पैदा करने के लिए अपने हाथ और दिमाग चलाते नजर आएगा|

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नो के उत्तर लिखिए |

1.उपयुक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए|

2.शिक्षा का मूल प्रयोजन क्या है? शिक्षा इससे किस तरह भटक गई है?

3.शिक्षा क्षेत्र में किन बातों की उपेक्षा हो रही है?

4.विपरितार्थक शब्द लिखिए- अंधेरा, साक्षर, वांछित, रोजगार|

उपरोक्त प्रश्नो के संभावित उत्तर:-

1.गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक- भ्रष्ट शिक्षा- व्यवस्था है|

2.शिक्षा का मूल प्रयोजन- ज्ञान का प्रसार करना तथा समाज की जरूरत के अनुरूप योग्य नागरिक तैयार करना किंतु शिक्षा इससे भटक गई है| ज्ञान से शिक्षा का संबंध हटकर साक्षरता और डिग्री प्राप्त करने से जुड़ गया है| शिक्षा के नाम पर स्कूल के भवन बनवाने, नामांकन बढ़ाने, परीक्षा पद्धति बदलने तथा जैसे-तैसे संस्थान खोलने आदि का काम हो रहा है|

3.कृषि तथा कुटीर उद्योग हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है| हमारी अर्थव्यवस्था का 60% भाग खेती पर आधारित है| उससे संबंधित ज्ञान के लिए 1% से भी कम ध्यान दिया जा रहा है| कुटीर उद्योगों के विकास के प्रति शिक्षा-क्षेत्र में भारी उपेक्षा है| पहले बेसिक शिक्षा में छोटे उद्योगों के बारे में पढ़ाया जाता था |किंतु अब ऐसा नहीं होता| इनकी उपेक्षा से देश की भीषण क्षति हो रही है| देश की उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन बड़ी कंपनियों के ऊपर छोड़ना ठीक नहीं है|

4.विपरीतार्थक शब्द- अंधेरा – उजाला| 2. साक्षा -  निरक्षर|  3. वांछित- अवांछित| 4. रोजगार - बेरोजगार|

Solved Apathit Gadyanshs for Class 10

अपठित गद्यांश 

नारद जी भी ब्रह्मचारी थे| उन्होंने सत्य के बारे में शब्दों पर चिपकने नहीं सबके हित या कल्याण को अधिक जरूरी समझा था|

सत्यस्य वचन श्रये: सतयदपि हित वदेत|

भीष्म ने दूसरे पक्ष की उपेक्षा की थी| वह ‘सत्यस्य वचनम’ को ‘हित’ से अधिक महत्व दे गए| श्रीकृष्ण ने ठीक उलटा आचरण किया| प्रतिज्ञा में ‘सत्यस्य वचनम’ की अपेक्षा ‘हितम’ को अधिक महत्व दिया| क्या भारतीय सामूहिक चित ने भी उन्हें पूर्णावतार मानकर इसी पक्ष को अपना मौन समर्थन दिया है? एक बार गलत-सही जो कह दिया उसी से चिपट जाना ‘भीषण’ हो सकता है, हितकर नहीं| भीष्म ने ‘भीषण’ को ही चुना था|

भीष्म और द्रोण भी ,द्रौपदी का अपमान देखकर भी क्यों चुप रह गए? द्रोण गरीब अध्यापक थे, बाल-बच्चे वाले थे| गरीब ऐसे की गाय भी नहीं पाल सकते थे| बिचारी ब्राह्मणी को चावल का पानी देकर दूध मांगने वाले बच्चे को फुसलाना पड़ा था| उसी अवस्था में फिर लौट जाने का साहस कम लोगों में होता है, पर भीष्म तो पितामह थे| उन्हें बाल-बच्चों की फिक्र भी नहीं थी, भीष्म को क्या परवाह थी? एक कल्पना यह की जा सकती है कि महाभारत की कहानी जिस रूप में प्राप्त है, वह उसका बाद का परिवर्तित रूप है| शायद पूरी कहानी जैसी थी वैसी नहीं मिली है| लेकिन आजकल के लोगों को आप जो चाहे कह ले, पुराने इतिहासकार इतने गिरे हुए नहीं होंगे कि पूरा इतिहास ही पलट दें| इस कल्पना से भी भीष्म की चुप्पी समझ में नहीं आती| इतना सच जान पड़ता है कि भीष्म में कर्तव्य-अकर्तव्य के निर्णय में कहीं कोई कमजोरी थी| वह उचित अवसर पर उचित निर्णय नहीं ले पाते थे| यद्यपि वह जानते बहुत थे, तथापि कुछ निर्णय नहीं ले पाते थे| उन्हें अवतार ने मानना ठीक ही हुआ| आजकल भी ऐसे विद्वान मिल जाएंगे, जो जानते बहुत है, करते कुछ भी नहीं करने वाला इतिहास-निर्माता होता है, सिर्फ सोचते रहने वाला इतिहास के भयंकर रथ-चक्र के नीचे पिस जाता है| इतिहास का रथ वह हाँकता है जो सोचता है और सोचे हुए को करता भी है|

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नो के उत्तर लिखिए |

1.इतिहास का रथ हांकने से क्या तात्पर्य है? इतिहास का रथ कौन हाँकता है?

2.भीष्म ने किस पक्ष की उपेक्षा की थी?

3.उपयुक्त गद्यांश का एक संक्षिप्त शीर्षक लिखिए|

4.‘इतिहासकार’ में कौन-सा प्रत्यय जुड़ा है? इस प्रत्यय को प्रयोग करके दो नए शब्द बनाइए|

उपरोक्त प्रश्नो के संभावित उत्तर:-

1.इतिहास का रथ हांकने का तात्पर्य है युग-निर्माण के कार्य करना, ऐसे कार्य करना जो समाज को आगे ले जा सके| इतिहास का रथ वह हाँकता है जो भविष्य के लिए योजनाएं बनाने में कुशल नहीं होता अपितु उनके अनुकूल काम भी करता है| जो सोचता है और सोचे हुए को करता भी है वही इतिहास हाँकता है|

2.भीष्म ने परहित तथा जनहित के पक्ष की उपेक्षा की| उन्होंने अपना विवाह न करने की प्रतिज्ञा के सत्य को ही महत्वपूर्ण माना| उन्होंने अपने भाइयों के लिए कन्या अपहरण किया था| उनके भाई अयोग्य थे| राज्य के हित के लिए उनको प्रतिज्ञा के सत्य की उपेक्षा करनी चाहिए थी| उस समय के नियम के अनुसार अपहृता कन्या से उनको ही विवाह करना चाहिए था| परंतु भीष्म ने सत्य के भीषण पक्ष को चुना और सत्य के जनहितकारी पक्ष की उपेक्षा की|

3.उचित शीर्षक- ‘अनिर्णय के शिकार भीष्म पितामह|’

4.‘इतिहासकार’ में ‘कार’ प्रत्यय जुड़ा है| ‘कार’ प्रत्यय से निर्मित दो शब्द हैं- कहानीकार 2.उपन्यासकार|

Comprehension Passages Hindi for Class 10

अपठित गद्यांश 

आइए देखें, जीवन क्या है? जीवन केवल जीना, खाना, सोना और मर जाना नहीं है| यह तो पशुओं का जीवन है| मानव-जीवन में भी यह सभी प्रवृतियां होती है, क्योंकि वह भी तो पशु है| पर इनके उपरांत कुछ और भी होता है| उसमें कुछ ऐसी मनोवृत्तियाँ होती है, जो प्रकृति के साथ हमारे मेल में बाधक होती हैं, कुछ ऐसी होती हैं, जो इस मेल में सहायक बन जाती है| जिन प्रवृत्तियों में प्रकृति के साथ हमारा सामंजस्य बढ़ता है, वह वांछनीय होती है, जिनसे सामंजस्य में बाधा उत्पन्न होती है, वह दूषित हैं| अहंकार, क्रोध या द्वेष हमारे मन की बाधक प्रवृतियां है| यदि हम इनको बेरोक-टोक चलने दे, तो नि:संदेह वह हमें नशा और पतन की ओर ले जाएगी, इसलिए हमें उनकी लगाम रोकनी पड़ती है, उन पर संयम रखना पड़ता है, जिससे वे अपनी सीमा से बाहर न जा सके| हम उन पर जितना कठोर संयम रख सकते हैं, उतना ही मंगलमय हमारा जीवन हो जाता है|

किंतु नटखट लड़कों से डांटकर कहना- तुम बड़े बदमाश हो, हम तुम्हारे कान पकड़कर उखाड़ लेंगे- अक्सर व्यर्थ होता है, बल्कि उस प्रवृत्ति को ओर हठ की ओर ले जाकर पुष्ट कर देता है| जरूरत यह होती है कि बालक में जो सद्वृत्तियाँ है, उन्हें ऐसा उत्तेजित किया जाए कि दूषित वार्त्तियाँ स्वभाविक रुप में शांत हो जाए| इसी प्रकार मनुष्य को भी आत्मविकास के लिए संयम की आवश्यकता होती है| साहित्य ही मनोविकारों के रहस्य खोलकर सद्वृत्तियाँ को जगाता है| सत्य को रसों द्वारा हम जितनी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं, ज्ञान और विवेक द्वारा नहीं कर सकते, उसी भांति जैसे दुलार-पुचकारकर बच्चों को जितनी सफलता से वश में किया जा सकता है, डांट- फटकार से संभव नहीं है| कौन नहीं जानता कि प्रेम से कठोर-से-कठोर प्रकृति को नरम किया जा सकता है| साहित्य मस्तिष्क की वस्तु नहीं, ह्रदय की वस्तु है| जहां ज्ञान और उपदेश असफल होता है, वहां साहित्य बाजी ले जाता है|

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नो के उत्तर लिखिए |

1.मनुष्य की वे कौन-सी प्रवर्तियाँ है जिन पर संयम रखना आवश्यक है तथा क्यों?

2.सद्वृत्तियाँ को जगाने में साहित्य का क्या योगदान है?

3.‘बाजी मारना’ मुहावरे का अर्थ लिखकर उसका स्वरचित वाक्य में प्रयोग कीजिए|

4.प्रस्तुत गद्यांश का शीर्षक लिखिए|

उपरोक्त प्रश्नो के संभावित उत्तर:-

1.मनुष्य में कुछ दुष्टप्रवर्त्तियाँ होती है| ये प्रकृति के साथ उसके मेल में बाधक होती है| अहंकार, क्रोध, द्वेष इत्यादि कुछ मानवीय दुष्टप्रवर्त्तियाँ है| इन पर नियंत्रण या संयम रखना आवश्यक है| यह प्रकृति के साथ मनुष्य के सामंजस्य में बाधा डालती है| इनको बिना नियंत्रण के चलने देने से मनुष्य का जीवन पतन और विनाश के गर्त में गिर जाता है|

2.बुरी वार्त्तियाँ को बलपूर्वक नहीं रोका जा सकता| इनको रोकने के लिए साहित्य की सहायता आवश्यक है| साहित्य मनोविकारो के रहस्य खोलकर सद्वृत्तियाँ को जगाता है| सत्य को रस द्वारा प्राप्त करना जितना सरल है उतना ज्ञान और विवेक द्वारा नहीं| प्रेम से कठोर प्रकृति का व्यक्ति भी नरम हो जाता है| जब सद्वृत्तियाँ जाग उठती है तो दुष्टप्रवर्त्तियाँ स्वत: ही प्रभावहीन हो जाती है| दुष्टप्रवर्त्तियाँ को बलपूर्वक दबाने से वे कुछ समय तक तो निष्क्रिय रहती है किंतु बाद पुन: दुने वेग क्रियाशील हो जाती है| अतः सद्वृत्तियाँ को प्रबल बनाकर ही बुरी व्रतियों को रोका जा सकता है| इसमें साहित्य बहुत अधिक उपयोगी है|

3.‘बाजी मारना’ का अर्थ है- विजय होना| वाक्य प्रयोग- दौड़ में अनेक प्रतियोगी भी भाग ले रहे थे परंतु महेश बाजी मार ले गया|

4.उचित शीर्षक- ‘मानव जीवन के उत्थान में साहित्य का योगदान’|

 

Apathit Gadyansh for Class 10

अपठित गद्यांश 

जीवन का दूसरा नाम संग्राम है| यह संग्राम जन्म से आरंभ होकर जीवन पर्यन्त जारी रहता है| प्राचीन पुराणों में देवासुर संग्राम का उल्लेख है, जिसमें विष्णु की कूटनीति से देवताओं ने असुरों से संधि का प्रस्ताव रखा| इसके अनुसार समुद्र मंथन मिलकर करना तय हुआ| निश्चय किया गया कि इस मंथन से प्राप्त वस्तुओं को वे दोनों संयुक्त रूप से विभक्त कर लेंगे| मंदराचल पर्वत को मथानी, शेषनाग को रस्सी तथा स्वयं भगवान विष्णु ने कच्छप के रूप में इस प्रकार में सहयोग दिया| अभिमानी दैत्य, सर्प के मुंह तथा देव पूँछ की ओर लगे| कार्य समाप्त हुआ| रत्नों का विभाजन हुआ| इसमें एक कमल, मीण, लक्ष्मी, पदम, शंख, हाथी आदि देवों को तथा घोड़ा आदि दानवो को प्राप्त हुआ| मदिरा दानवो ने तथा हलाहल विष को भगवान शंकर ने पान कर कंठ में धारण किया और नीलकंठ कहलाए| अमृत निकलने पर छीन- झपट आरंभ हुई| विष्णु ने चालाकी से दैत्यों को मदिरा तथा देवों को अमृत पिलाया| उधर राहु नामक दैत्ये ने छल से अमृत पी लिया| विष्णु ने चक्र से उसका सिर काट दिया, किंतु वह अमर हो गया|

ब्रह्म रूप में तो यह संग्राम समाप्त हो गया, किंतु अप्रत्यक्ष रूप में यह आज भी जारी है| इस संग्राम का केंद्र मानव मन, अच्छी और बुरी प्रवर्ति दो पक्ष सारा वातावरण ही इसके कारण है| जैसे-जैसे मानव साकार रूप देने का प्रयास आरंभ कर देता है| इस प्रयत्न में वह न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाता है| स्वार्थ सिद्धि ही उसका एकमात्र उद्देश्य बन जाता है| उसके जीवन का केंद्र स्वार्थ और तृप्ति में ही निहित हो जाता है| ऐसा व्यक्ति कभी नैतिक मूल्यों पर विचार की कल्पना भी नहीं कर सकता| यही कारण है कि वह हर समय अशांत और तनावग्रस्त रहता है| इच्छा-त्याग से ही शांति का अनुभव होता है|

आसुरी शक्ति के समक्ष हमारे पूर्वजों ने घुटने टेकने के स्थान पर उसका दृढ़ता से सामना करना पसंद किया| इसके लिए उन्होंने विभीषण के सामने अपने बंधु रावण के अन्याय को स्वीकार करने के स्थान पर उसका दृढ़ता से विरोध करने का प्रस्ताव किया| ‘सत्यमेव जयते’ में विश्वास प्रकट करते हुए, असत्य और अन्याय का विरोध किया| अन्याय करना और सहना कायरता की निशानी है| अतः अन्याय सहने वाला भी अन्याय का समर्थक माना जाता है| आज धर्म और नैतिकता लुप्त हो रही है| भौतिकता के प्रति प्रेमाधिकार के कारण जीवन में संवेदना का अभाव हो गया है|

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नो के उत्तर लिखिए |

1.इस गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक बताइए|

2.हमारे पूर्वजों ने आसुरी शक्ति के साथ क्या किया?

3.‘समुद्र-मंथन’ की कथा संक्षेप में लिखिए|

4.‘नीलकंठ’ में विग्रह करके समास का नाम तथा परिभाषा लिखिए|

उपरोक्त प्रश्नो के संभावित उत्तर:-

1.गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक- जीवन- संग्राम|

2.हमारे पूर्वजों ने आसुरी शक्ति के सामने घुटने नहीं टेके| वे उसके साथ निरंतर दृढ़तापूर्वक संघर्ष करते रहे| उन्होंने विभीषण को भी समझाया कि वह अपने भाई रावण के अन्याय को सहन न करें बल्कि उसका दृढ़तापूर्वक विरोध करें| उन्होंने सत्य की जीत में सदा विश्वास किया और असत्य तथा अन्याय का हमेशा विरोध किया| वे अन्याय सहन करने को कायरता मानते थे और कभी अन्याय सहन नहीं करते थे|

3.देवताओं तथा असुरों ने मिलकर समुद्र को मथा था| इसके लिए मंदराचल पर्वत की मथानी तथा शेष को रस्सी की तरह प्रयोग किया गया था| दैत्यों ने शेषनाग का मुंह तथा देवताओं ने उसकी पूछ पकड़ रखी थी| भगवान विष्णु कछुए का रूप धरकर मंदराचल की मथानी को सहारा दे रहे थे| इस मंथन से चौदह रत्न प्राप्त हुए| इनका विभाजन दैत्ये तथा देवताओं के बीच हुआ था| इन रत्नों में अमृत भी था| विष्णु ने छल के साथ अमृत देवताओं को पिला दिया| असुर राहु ने देवता को धोखा देकर अमृत पी लिया| विष्णु ने उसका सिर काट दिया परंतु वह तो अमर हो चुका था| इस मंथन से प्राप्त हलाहल विष को संसार के कल्याण के लिए शिवजी ने अपने कंठ में धारण कर लिया और वह नीलकंठ कहलाए|

4.नीलकंठ विग्रह- नीला है कंठ जिसका वह (शिव) समाज- बहुव्रीहि|

Discursive Passage Hindi for Class 10

 अपठित गद्यांश 

हिरोशिमा और नागासाकी में हुआ भयानक विनाश आज भी रोंगटे खड़े कर देता है| विनाशकारी भूकंप और सुनामी के कारण जापान में फुकुशिमा परमाणु संयंत्रों में विस्फोट का तथा विकिरण का खतरा बढ़ता जा रहा है| इस संयंत्र के सतर्कता स्तर को बढ़ाकर पांच कर देने से यूक्रेन में सन 1986 में हुई चेनोर्बिल परमाणु त्रासदी से यह दो स्तर ही नीचे रह गया है| जर्मनी में वहां के नागरिकों के परमाणु विरोधी प्रदर्शन के कारण परमाणु कार्यक्रमों पर पर तुरंत रोक लगा दी गई है| विद्युत उत्पादन के लिए कोयले पर आधारित थर्मल पावर की जगह परमाणु ऊर्जा अधिक साफ-सुथरी तथा अच्छे परिणाम वाली है परंतु इसमें विकिरण से होने वाले भयानक विनाश का संकट भी है| परमाणु विखंडन के साथ समस्या यह है कि रेडिएशन से वर्तमान ही नहीं भावी पीढ़ियों का जीवन भी दांव पर लग जाता है| वर्ष 1979 में डाउफिन काउंटी पेंसिलवेनिया में तीन माइल आइलैंड परमाणु संयंत्र यूनिट की दूसरी रिएक्टर में हादसा हुआ था| वहां इन 20 वर्षों में कोई नया परमाणु संयंत्र नहीं लगाया गया| परमाणु ऊर्जा का सबसे भयानक पक्ष सन 1986 में चेनोर्बिल हादसे के बाद सामने आया| तब अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने परमाणु दायित्व के विश्वव्यापी मापदंड तय किए| 1988 में विएना और पेरिस सम्मलेनों में हुए निर्णयों को अमल में लाने के लिए संयुक्त प्रोटोकोल स्वीकार किया गया| यह 1992 में लागू हो सका|

परमाणु विकिरण से होने वाला विनाश कल्पना से बाहर की बात है| जापान की त्रासदी के बाद इस पर विचार होने लगा है| परंतु भारतीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के पूर्व अध्यक्ष डॉ अनिल काकोडकर जैतापुर परमाणु ऊर्जा परियोजना को जरूरी मान रहे हैं| उनका कहना है कि फुकुशिमा के रिएक्टर पुरानी डिजाइन तथा तकनीक के थे| भविष्य में ऐसे न्यूक्लियर प्लांट बनाए जा सकते हैं, जो भूकंप, सुनामी का संकट झेल सके| परंतु चेर्नोबिल तथा 3 माइल आइलैंड में तो कोई भूकंप भी नहीं आया था| भारत परमाणु उद्योग के सुरक्षा संबंधी प्रभावों से निपटने में सक्षम नहीं है| भारत के पास विकिरण संबंधी दुर्घटना से निपटने के लिए कोई आपातकालीन तैयारी भी नहीं है| यह बात दिल्ली के मायापुरी में हुई परमाणु विकिरण की घटना से सिद्ध हो चुकी है| अतः इस प्रकार के संकट की संभावना को हल्के पन से लेना उचित नहीं है|

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नो के उत्तर लिखिए |

1.हिरोशिमा तथा नागासाकी में हुए भयानक विकास का क्या कारण था?

2.जापान के फुकुशिमा दायची परमाणु संयंत्रों की त्रासदी से विश्व के समक्ष विचार के लिए क्या प्रश्न उपस्थित हुआ है?

3.उपयुक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए|

4.‘कल्पना से बाहर की बात’ के लिए एक शब्द लिखिए|

उपरोक्त प्रश्नो के संभावित उत्तर:-

1.हिरोशिमा तथा नागासाकी जापान के दो शहर है| द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका ने इन पर परमाणु बम गिराए जिससे अनेक लोग मारे गए थे| उससे कई गुना बीमार हुए थे तथा विकिरण के प्रभाव से जल, वायु, खाद्यान्न दूषित हो गए थे| विकिरण के दुष्प्रभाव से भावी पीढ़ी को अनेक रोगों तथा शारीरिक पीड़ा को झेलना पड़ा है|

2.जापान के फुकुशिमा दायित्व में विद्युत उत्पादन आदि के लिए परमाणु ऊर्जा का प्रयोग होता है| मार्च 2011 में आए भूकंप, सुनामी के कारण इन संयंत्रों में विस्फोटक का खतरा उत्पन्न हो गया तथा इससे जल, वायु तथा खाद पदार्थों के प्रदूषण का संकट उत्पन्न हो गया है| इससे विश्व के सामने विचार करने के लिए यह प्रश्न उपस्थित हो गया है कि क्या विद्युत उत्पादन के लिए थर्मल पावर के स्थान पर परमाणु ऊर्जा का प्रयोग पूरी तरह निरापद है|

3.उपयुक्त गद्यांश का उचित शीर्षक- ‘परमाणु ऊर्जा का उपयोग निरापद नहीं’ है|

4.कल्पना से बाहर की बात शब्द के लिए एक शब्द- अकल्पनीय|

Apathit Gadyansh with multiple choice questions for Class 10

अपठित गद्यांश 

निर्लिप्त रहकर दूसरों का गला काटने वालों से लिप्त रहकर दूसरों की भलाई करने वाले कहीं अच्छे होते हैं- क्षात्रधर्म एकांतिक नहीं है, उसका संबंध लोकरक्षा से है| अतः वह जनता के सम्पूर्ण जीवन को स्पर्श करने वाला है| ‘कोई राजा होगा तो अपने घर का होगा’……. इसमें बढ़कर झूठ बात शायद ही कोई और मिले| झूठे खिताबों के द्वारा यह कभी सच नहीं की जा सकती| क्षात्र जीवन के व्यापकत्व के कारण ही हमारे मुख्य अवतार- राम और कृष्ण- क्षत्रिय हैं|

कर्म- सौंदर्य की योजना जितने रूपों में क्षात्र जीवन में संभव है, उतने रूपों में और किसी जीवन में नहीं| शक्ति के साथ क्षमा, वैभव के साथ विनय, पराक्रम के साथ रूप- माधुर्य, तेज के साथ कोमलता, सुखभोग के साथ पर दुख का कातरता, प्रताप के साथ कठिन धर्म- पथ का अवलंबन इत्यादि कर्म सौंदर्य के इतने अधिक प्रकार के उत्कर्ष योग और कहां घट सकते हैं?

इस व्यापार युग में, इस वणिग्धर्म प्रधान युग में, क्षात्रधर्म की चर्चा करना शायद गई बात का रोना समझा जाए पर आधुनिक व्यापार की अन्याय रक्षा भी शास्त्रों द्वारा ही की जाती है| क्षात्रधर्म का उपयोग कहीं नहीं गया है- केवल धर्म के साथ उसका असहयोग हो गया है|

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नो के उत्तर लिखिए |

1.प्रस्तुत गद्यांश के लिए एक उचित शीर्षक दीजिए|

2.क्षात्रधर्म क्या है? उसमें कर्म सौंदर्य कितने रूपों में दिखाई देता है|

3.‘वणिग्धर्म’ किसको कहा गया है तथा क्यों?

4.‘राम और कृष्ण’ से सामासिक पद बनाइए तथा समास का नाम लिखिए|

उपरोक्त प्रश्नो के संभावित उत्तर:-

1.गद्यांश के लिए उचित शीर्षक- ‘क्षात्रधर्म की महत्ता’|

2.देश, जाति तथा समाज की रक्षा के लिए शस्त्र उठाना क्षात्रधर्म है| क्षात्रधर्म में कर्म सौंदर्य अनेक रूपों में दिखाई देता है| इसमें शक्ति के साथ क्षमा, वैभव के साथ विनय, पराक्रम के साथ रूप की मधुरता, तेज के साथ कोमलता, सुखभोग के साथ परदुख कातरता, प्रताप के साथ कठिन धर्म- पथ का अवलंबन आदि गुण पाए जाते हैं|

3.लेखक ने व्यापारी के काम को वणिग्धर्म कहा है- वणिग्धर्म अर्थात व्यापारी का कर्तव्य| वणिग्धर्म का क्षात्रछात्र धर्म के समान व्यापक नहीं होता| आज के युग को वणिग्धर्म प्रधान युग कहने का आशय यह है कि आज पूंजीपति का लक्ष्य पूंजी का अर्जन तथा विस्तार है| सामाजिक हित तथा सरोकारों से उसका कोई संबंध नहीं है| आज पूरे संसार में धनोपार्जन ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है| शिक्षा का उद्देश्य भी मानवीय गुणों का विकास न होकर मनुष्य को धन कमाने योग्य बनाना ही है| धर्म, परोपकार, मानवता आदि गुण आज उपेक्षित हो रहे हैं|

4.राम और कृष्ण का सामासिक पद ‘रामकृष्ण’ है| इसमें द्वंद समास है|

Apathit Gadyansh for Class 10 with answers pdf

अपठित गद्यांश

भ्रष्टाचार के बारे में हम कुछ कटु सत्य से बात शुरू करेंगे, तो विषय की गंभीरता स्पष्ट हो जाएगी| हमारी दिलचस्पी अखबारी औपचारिकताओं में कदापि नहीं है| पहली बात हमें यह जान लेनी चाहिए कि भ्रष्टाचार मूल बीमारी नहीं है| यह तो एक लक्षण मात्र है| जैसे किसी व्यक्ति को बुखार हो और हम कहे की ‘बुखार’ की बीमारी है, तो यह गलत होगा| बुखार तो एक लक्षण है, जो किसी बीमारी को इंगित करता है| यह मलेरिया, टाइफाइड या अन्य बीमारी के कारण हो सकता है| आप बुखार की गोली से केवल लक्षण का इलाज कर मरीज को राहत दे सकते हैं बीमारी खत्म नहीं होगी| बल्कि आप यह भी समझ लीजिए कि बुखार को उतारने के प्रयास में आप बीमारी को गंभीर भी बना सकते हैं| मलेरिया का इलाज क्विनेन है, टाइफाइड का इलाज एंटीबायोटिक है और ये बीमारियां तभी जड़ से खत्म होगी जब आप यह दवाइयां देंगे|

लेकिन भ्रष्टाचार पर इतनी चर्चा हो रही है और मूल बात पर हम नहीं जा रहे हैं या जाना नहीं चाहते, क्योंकि तब हम सभी लपेटे में आते हैं| फिर आलोचना का मजा सुनने का खतरा भी है| मूल समस्या सामाजिक मूल्यों की है| भारत में धन और पद का मूल्य इस कदर बढ़ गया है कि प्रत्येक व्यक्ति इन मूल्यों पर खरा उतरना चाहता है| धन ही नहीं, धन के दिखावे का मूल्य भी बढ़ गया है| आप जानते हैं कि मनुष्य सामाजिक प्राणी है और भारतीय व्यक्ति तो वैसे भी सामूहिकता में अधिक विश्वास करता है| एकाकी जीवन या सोच के हम आदी नहीं है| जो सब करे, वहीं हमे करना है, सही हो या गलत| इसी भीड की भावना को हम लोकतंत्र भी कह देते हैं और बुराई को छुपा लेते हैं| यही हाल पैसे का है| किसी भी तरह से आए, पैसे को हमने अधिक मान दे रखा है| उस पैसे के दिखावे के रूप में हमने मकान, सोना, गाड़ी, विवाह व अन्य समारोह में खर्च आदि को मान्यता दे रखी है|

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नो के उत्तर लिखिए |

1.प्रस्तुत गद्यांश के लिए एक शीर्षक लिखिए

2.भ्रष्टाचार मुख्य समस्या क्यों नहीं है?

3.भ्रष्टाचार के नष्ट न होने और लगातार बढ़ते जाने का क्या कारण है?

4.निम्नलिखित के विपरीतार्थक शब्द लिखिए- (i) भ्रष्टाचार (ii) सत्य (iii) सामाजिक (iv) सामूहिक |

उपरोक्त प्रश्नो के संभावित उत्तर:-

1.गद्यांश का उचित शीर्षक- भ्रष्टाचार का कारण|

2.भ्रष्टाचार मुख्य समस्या नहीं है| यह बीमारी न होकर बीमारी का लक्षण मात्र है| ‘बुखार’ बीमारी न होकर बीमारी का एक लक्षण है| बीमारी तो मलेरिया, टाइफाइड आदि है| बीमारी का इलाज करने पर वह ठीक हो जाती है| गलत दवा देकर बुखार उतारने से तो बीमारी और बढ़ सकती है| इसी प्रकार भ्रष्टाचार जिन कारणों से बढ़ रहा है, उन कारणों को दूर करना जरूरी है| मुख्य समस्या भ्रष्टाचार के कारणों पर ध्यान देना है|

3.भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन चल रहे हैं तथा अखबारों में भी दिन रात छप रहा है| परंतु भ्रष्टाचार मिटा नहीं पा रहा| कारण, हम मूल समस्या को समझ नहीं रहे हैं| मूल समस्या है सामाजिक मूल्य| भारत में धन तथा पद को औचित्य से अधिक महत्व प्राप्त है| धन तथा पद में ऊंचे लोगों की नकल करना हमारी आदत बन गई है जो सब कर रहे हैं, वही ठीक है, यह मानकर हम विवेकहीन होकर नकल करते हैं| भीड़ की इस भावना को हमने लोकतंत्र मान लिया है| धन को हम मकान, सोना, गाड़ी, विवाह तथा अन्य समारोह में खर्च करके अपनी श्रेष्ठा प्रमाणित करना चाहते हैं, अपनी आमदनी का विचार नहीं करते, सही मार्ग पर अकेले चलने का साहस नहीं दिखाते| इसी कारण भ्रष्टाचार निरंतर बढ़ रहा है और ऊपरी प्रयासों से वह नष्ट भी नहीं हो रहा है|

4.(i) भ्रष्टाचार- सदाचार (ii) सत्य- असत्य (iii) सामाजिक- असामाजिक (iv) सामूहिक- व्यक्ति|

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